Tuesday, February 18, 2014

अश्मिभूत



तुमने एक बार फिर
उस सतह को बींधा
जिसके नीचे दबे थे
बहुत से अहसास-
अनगिनत सपने-
कुछ वादे-
कुछ टूटे
कुछ अनछुए-
कुछ कोशिशें-
उन्हें निभाने की
कुछ टुकड़े कमज़ोर पलों के -
जो वक़्त से छूटकर -
छितर गए थे -
और साथ ही बिखर गयी -
हर उम्मीद -
उन्हें दोबारा जीने की -

छेड़ा होता
उस शांत नीरव सतह को -
तो हो सकता है
सब कुछ -
वक़्त के बोझ तले जो जाता
अश्मिभूत !
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रहता तो भीतर ही...!!!